उनसे मिलें तो लगता है कि
भारतीय नृत्यकला का श्रेष्ठतम स्वरूप आपसे रूबरू है.गौरवर्ण,दमकता चेहरा, चपल
नेत्र और भव्य भाल को सुशोभित तिलक जैसे भारतीय संस्कृति का एक अनोखा सोपान सिरज
रहा है. उम्र तो बढ़ चली है लेकिन मानसिक चैतन्यता का ये आलम है उनकी वाणी,विचार और
देह सब एक नृत्य वीथिका बनकर पूरे परिवेश को सुरभित कर रहे हैं.वे नृत्य के समग्र
विन्यास और विधा का साक्षात्कार हैं.हर बात को गौर से सुनती और उसका सुलझा हुआ
उत्तर देतीं ये हैं सोनल मानसिंह निजी प्रवास पर शहर में थीं और चंद लम्हे
उन्होंने नईदुनिया से बतियाने के लिये निकाले.
भरतनाट्य और ओड़ीसी की अनन्य
गुरू और साधिका पद्मविभूषण डॉ.सोनल मानसिंह मंच पर आधी सदी से ज्यादा समय से
सक्रिय हैं.९० देशों की यात्रा कर चुकीं सोनलजी महज एक नृत्यांगना ही नहीं
सांस्कृतिक और सामाजिक सरोकारों पर बेबाकी से अपनी बात रखने वाली सशक्त प्रवक्ता
भी हैं.नृत्य विधा का समकालीन स्वरूप क्या
है और वह और क्या होगा यह पूछने पर सोनलजी के कहा मैं हमेशा आशावादी रहीं हूँ और
पॉजीटिव थिंकिंग में यकीन करती हूँ. मेरा मानना है कि हर कालखण्ड में परिवर्तन आता
है और उसे स्वीकारना ही होगा. नई पीढ़ी और इस दुनिया को अब इंटरनेट ने नजदीक ला
दिया है और दिल्ली में बैठ कर कैलिफोर्निया में किसी शिष्या को कुचीपुड़ी सिखाया जा
रहा है तो यह एक बढिया संकेत है. मैंने जब सात आठ बरस की उम्र में शुरूआत की थी तब
परिवार को ये समझाना कि नृत्य को ही कोई लड़की अपना जीवन बनाना चाहती है;मुमकिन
नहीं था.जबकि मैंने साहस कर के ऐसा कर दिखाया और परिवार को सूचित किये बिना मैं
साढ़े अठारह बरस की उम्र में चैन्नई अपने गुरू के घर पहुँच गई.
सोनल मानसिंह मानती हैं कि
तहजीब नदी की मानिंद है वह अपने नये नये किनारे तलाशती रहती है सो उस पर चिंता
करने की जरूरत नहीं है. हो सकता है कि कभी हमारी पूरी विरासत ही ओझल हो जाए लेकिन
उसमें भी निराश होने की जरूरत नहीं है क्योंकि कलाओं की सर्जक प्रकृति है और वही
उसका मुस्तकबिल तय करती है.हाँ समय की रफ्तार में यदि कलाएँ काल-कवलित हो गईं तो
चल सकता है लेकिन रियलिटी शोज युवा पीढ़ी को
जिस तरह से तत्काल परिणाम और कामयाबी की ओर ले जा रहे हैं वह बहुत खतरनाक
है. क्या शास्त्रीय संगीत और नृत्य का कोई रियलिटी शो नहीं शुरू हो सकता ? सोनलजी
ने कहा इसलिये नहीं क्योंकि ऐसे रचनात्मक कार्यक्रमों के लिये प्रायोजक मिलना नामुमकिन
है. आज का पूरा कला परिदृश्य प्रायोजक के आसरे है. कलाकार और कला को जिन्दा रखना
है तो अपने भीतर के जुनून,पैशन और जिद को जिन्दा रखना बहुत जरूरी है.डॉ.मानसिंह ने
कहा कि मैंने देवदासी परम्परा से आई नृत्यांगनाओं
को भी देखा है और रुक्मिणी देवी अरुण्डेल,इन्द्राणी रहमान,सितारा देवी और
नटराज गोपीकृष्ण जैसे नये रूपाकार गढ़ने वाले नृत्य-साधकों को भी और महसूस किया है
कि ये सभी कला साधक भारतीय कला फलक के महापात्र थे और इन्होंने आम आदमी में
कलानुराग जागृत करने में महती भूमिका अदा की है.
ये पूछने पर कि फिटनेस के
लिये आप क्या करतीं हैं तो सोनल मानसिंह ने कहा कि जो नृत्य करता है उसे किसी पावर
योगा या जिम में जाने की जरूरत नहीं.फिल्मों से आकर्षक प्रस्ताव जरूर मिले लेकिन
नृत्य ने ही जीवन का इतना समय ले लिया कि कभी उस तरफ जाने का वक्त ही नहीं मिल
पाया.इन्दौर में कई बार नृत्य प्रस्तुतियाँ दे चुकीं सोनल मानसिंह अभिनव कला समाज
के स्वर्णिम दौर को शिद्दत से याद करतीं रही. गुजराती पृष्ठभूमि से आईं,नागपुर में
पलीं-बढ़ीं और दिल्ली में जीवन का अधिकांश समय बिता चुकीं सोनल मानसिंह से मिलना
भारत की महान नृत्य परंपरा से मिलना है. .बातचीत को ख़त्म करते लग रहा था मानो
खजुराहो का कोई निहायत कलात्मक मुजस्सम प्राण पाकर बतिया रहा था.
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